Tuesday, May 25, 2010

An inspirational poem on Himalayas by Sohanlal Dwivedi

खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आंधी पानी में
खड़े रहो तुम अविचल होकर
सब संकट तूफानी में |

डिगो न अपने प्राण से , तो तुम
सब कुछ पासकते हो प्यारे,
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो 
छू सकते हो नभ के तारे |

अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में,
मिली सफलता जग में उसको
जीने में मर जाने में |

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